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🌹 संस्मरण 🌹
🙏🙏औघड़ की चुनौती 🙏🙏
बात काफी पुरानी है। असल में यह बात उस समय की है जब मैं 7वीं या 8वीं में पढ़ता था। एक दिन सुबह के के करीब 10बजे एक औघड़ बाबा मेरे घर के सामने से जा ही रहे थे की अचानक उन्होंने मां को देख कर आवाज लगाई,"कुछ दे दे माई" मेरी मां यद्यपि कुछ। खास पूजा पाठ नही करती थी। हां साल में एकाध बार सत्यनारायण व्रत कथा करवा लेती थीं। वैसे स्वभाव से काफी दयालु थीं।किसी को अपने दरवाजे से भूखा नहीं जाने देती,सो स्वभावतः उन्होंने बाबा को बैठने के लिए कहा।बाबा बैठ गए और मां भीतर बाबा के भिक्षा और कुछ खाने के लिए लेने चली गई।जब मां वापस आई उन्होंने बाबा को खाना दिया और साथ में एक शिधा। मित्रों यह वो सामग्री होती है जिसमे आटा, दाल, चावल,आलू,नमक, हल्दी,और अचार होता है। औघड़ बाबा खाना खा कर और सब सामान की गठरी बांधकर चलने को हुए चलने को तैयार ही थे की तब तक मैं आ गया।बाबा का पैर छुआ। बाबा ने आशीर्वाद दिया। मां ने जिज्ञासा कहिए या पुत्र स्नेह का लीजिए, मेरी हथेली बाबा के सामने फैला दिया और मेरा भविष्य पूछने लगी।मेरी हथेली देखते ही बाबा ने कहा इसके हाथ में तो विद्या रेखा ही नहीं है।यह तो 8वीं से ज्यादा कभी पढ़ ही नहीं पाएगा।तभी मैने निश्चय किया कि मैं किसी भी हाल में 9वीं पास करके दिखाऊंगा और इस औघड़ की बात को झूठा साबित कर के रहूंगा।फिर तो मैंइलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी साहित्य से सन 1987में स्नातकोत्तर किया। मैं सोचता हूं औघड़ बाबा की बात मेरे जीवन की टर्निंग पॉइंट थी।
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नरसिंह हैरान जौनपुरी मुंबई
Seema Priyadarshini sahay
04-Jun-2022 06:08 PM
बेहतरीन रचना
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Gunjan Kamal
03-Jun-2022 10:25 PM
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति 👌🙏🏻
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Raziya bano
03-Jun-2022 07:14 PM
Nice
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